
हम अक्सर सुनते हैं कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार मिला है, लेकिन कुछ मामलों में यह बात उलझन में डाल देती है कि विवाहित संतान के अधिकार कहां तक चलते हैं। हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें पिता की स्व-अर्जित संपत्ति से संबंधित विवाद पर स्पष्टता आई है। इस फैसले ने यह साफ किया कि स्व-अर्जित संपत्ति में पुत्र को कानूनी अधिकार नहीं होता, जबकि पैतृक संपत्ति में बेटियों और बेटों को बराबर अधिकार प्राप्त हैं।
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स्व-अर्जित संपत्ति से क्या मतलब है?
स्व-अर्जित संपत्ति वो होती है जो पिता ने अपनी कमाई या मेहनत से खरीदी हो। इस तरह की संपत्ति पर केवल पिता का अधिकार होता है। अगर पिता अपने विवाहित बेटे को वहां रहने की अनुमति देते हैं, तो वह एक तरह की सद्भावना या अनुग्रह होती है, जो किसी भी समय वापस ली जा सकती है। ऐसे मामलों में यदि पिता बेटे को या वसिये तौर पर संपत्ति खाली करने को कहते हैं, तो कानूनी तौर पर बेटे के पास उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। यह निर्णय राजस्थान हाईकोर्ट ने खास तौर पर एक मामले में दिया है, जिसमें पिता ने अपने स्व-अर्जित मकान में रहने वाली संतान को बाहर करने की बात कही।
पैतृक संपत्ति में समान अधिकार
दूसरी ओर, पैतृक संपत्ति के मामले में स्थिति पूरी तरह अलग है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार, जन्म से ही बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार प्राप्त हैं। इस कानून ने यह सुनिश्चित किया है कि बेटियां चाहे शादीशुदा हों या न हों, उन्हें पैतृक संपत्ति में पूरी हिस्सेदारी मिले। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भले ही पिता की मृत्यु 2005 के पहले हुई हो, तब भी बेटी का अधिकार लागू होता है, चाहे उस समय संशोधन नहीं भी हुआ हो। हालांकि, इसमें यह शर्त लगती है कि 2004 से पहले कोई वैध संपत्ति बंटवारा नहीं हुआ हो।
फैसले का सही मतलब
राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला पैतृक संपत्ति के हक से जुड़े नियमों को चुनौती नहीं देता। यह सिर्फ स्व-अर्जित संपत्ति की सीमा और कानूनी अधिकार पर स्पष्टीकरण प्रदान करता है। यदि पिता ने स्वयं कोई संपत्ति अर्जित की और उस पर अधिकार रखा है, तो पुत्र का रहने या उस संपत्ति पर कब्जा रखना पूरी तरह पिता की सहमति पर निर्भर होता है। पिता के कहने पर यदि पुत्र मकान खाली नहीं करता है, तो पिता की बात मानने की कानूनी आवश्यकता होती है।
पति-पत्नी और पैतृक संपत्ति
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि विवाहित संतान यानी बेटे और उनकी पत्नियां भी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार होते हैं। इस बात को लेकर कभी-कभी भ्रम उत्पन्न होता है, लेकिन कानून स्पष्ट रूप से बेटियों को भी बराबरी का अधिकार देता है। विवाहित होने के बावजूद बेटियां संपत्ति के मालिक हैं और उनका पति इसे कब्ज़ा नहीं कर सकता।
सामाजिक और कानूनी समझदारी जरूरी
आखिरकार, यह मामला सिर्फ संपत्ति के कानूनी अधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि परिवार में समझदारी और न्याय का भी विषय है। पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटे का कानूनी अधिकार न होना पिता और पुत्र के रिश्ते में एक स्पष्ट रेखा खींचता है। वहीं, पैतृक संपत्ति में बेटियों और बेटों के समान अधिकार ने सामाजिक न्याय की दिशा में एक मजबूत कदम बढ़ाया है। परिवारों को चाहिए कि वे इस कानून की समझ रखें और संपत्ति विवादों से बचने के लिए समय-समय पर स्पष्ट बंटवारा कर दें।
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि संपत्ति के मामले में कानूनी अधिकार संपत्ति के प्रकार पर निर्भर करते हैं। इसलिए संपत्ति से जुड़े विवादों में यह समझना जरूरी है कि कौन सी संपत्ति स्व-अर्जित है और कौन सी पैतृक है। इससे गलतफहमियां और झगड़े कम होंगे और परिवार में शांति बनी रहेगी।

















