
पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) की बिक्री को लेकर देश के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने हाल ही में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जिन्होंने कानूनी परिदृश्य को बदल दिया है, इन फैसलों के अनुसार, संयुक्त परिवार की विरासत में मिली संपत्ति को बेचना अब पहले जितना सरल नहीं रहा, क्योंकि इसमें परिवार के सभी सह-उत्तराधिकारियों (Coparceners) के अधिकारों को प्राथमिकता दी गई है।
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प्रमुख फैसले और कानूनी स्थिति
सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों ने यह स्पष्ट किया है कि पैतृक संपत्ति, जो कि चार पीढ़ियों तक पुरुष वंश में विरासत में मिली होती है, पर प्रत्येक उत्तराधिकारी का जन्म से अधिकार होता है।
सभी सह-उत्तराधिकारियों की सहमति अनिवार्य
सामान्य नियम यह है कि परिवार का कोई भी सदस्य, यहां तक कि मुखिया या पिता भी, अन्य सभी सह-उत्तराधिकारियों की स्पष्ट सहमति के बिना पूरी पैतृक संपत्ति का सौदा नहीं कर सकता है, यदि कोई एकतरफा बिक्री की जाती है, तो प्रभावित पक्ष उसे अदालत में चुनौती दे सकते हैं।
अविभाजित हिस्से की बिक्री संभव
मई 2025 में एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही संपत्ति का भौतिक विभाजन (Physical Partition) न हुआ हो, एक व्यक्तिगत वारिस अन्य वारिसों की सहमति के बिना भी संपत्ति में अपना अविभाजित हिस्सा (undivided share) बेचने का हकदार है। यह फैसला व्यक्तिगत अधिकारों को सुनिश्चित करता है।
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विभाजन के बाद संपत्ति बन जाती है ‘स्व-अर्जित’
अप्रैल 2025 में (अंगाडी चंद्रन्ना बनाम शंकर मामले में), सुप्रीम कोर्ट ने एक दूरगामी फैसला सुनाया, कोर्ट ने कहा कि एक बार जब संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति का विधिवत विभाजन हो जाता है और प्रत्येक सदस्य को उसका हिस्सा मिल जाता है, तो वह हिस्सा उस व्यक्ति की ‘स्व-अर्जित संपत्ति’ (Self-acquired property) माना जाता है, स्व-अर्जित संपत्ति का मालिक उसे बेचने, गिरवी रखने या वसीयत करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होता है, इसके लिए उसे किसी अन्य रिश्तेदार की सहमति की आवश्यकता नहीं होती।
कानूनी आवश्यकता (Legal Necessity) के अपवाद
संपत्ति बेचने की अनुमति कुछ विशेष परिस्थितियों में दी जा सकती है, जिन्हें ‘कानूनी आवश्यकता’ माना जाता है, इनमें परिवार के किसी सदस्य का गंभीर इलाज, बच्चों की उच्च शिक्षा का खर्च, या पैतृक ऋण चुकाना शामिल हो सकता है। हालांकि, यदि बिक्री में कोई नाबालिग (Minor) शामिल है, तो उनके हिस्से को बेचने के लिए अदालत (Court) की पूर्व मंजूरी आवश्यक होती है।
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नाबालिगों के संपत्ति अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा है कि कोई भी अभिभावक (Guardian) अदालत की अनुमति के बिना नाबालिग की संपत्ति नहीं बेच सकता, यदि ऐसी कोई बिक्री होती है, तो संबंधित नाबालिग बालिग (18 वर्ष की आयु पूरी करने) होने के बाद कानूनी समय सीमा के भीतर उस सौदे को रद्द करने के लिए अदालत जा सकता है।
नए नियमों ने पैतृक संपत्ति के लेनदेन में पारदर्शिता और सभी वारिसों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की है, जिससे एकतरफा फैसले लेना मुश्किल हो गया है।

















