
भारत में उद्यमिता की कई ऐसी प्रेरक कहानियाँ मौजूद हैं, जहाँ व्यक्तियों ने अपनी सुरक्षित नौकरी छोड़ दी और शून्य से शुरुआत करते हुए अपने छोटे घरेलू व्यवसाय को एक विशाल, करोड़ों रुपये के ब्रांड में बदल दिया, इन कहानियों में न केवल व्यक्तिगत सफलता की गाथा है, बल्कि देश में रोजगार सृजन का भी एक महत्वपूर्ण पहलू शामिल है।
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निरमा: घर के पीछे से राष्ट्रीय ब्रांड तक
इसकी सबसे प्रमुख मिसाल निरमा (Nirma) की सफलता है, करसनभाई पटेल ने 1969 में अहमदाबाद में अपने घर के पिछवाड़े में ही डिटर्जेंट बनाना शुरू किया था, उस वक्त बाजार में डिटर्जेंट की कीमत करीब 13 रुपये प्रति किलो थी। पटेल ने अपना उत्पाद सिर्फ 3 रुपये प्रति किलो में लॉन्च किया, जिसने बाजार में खलबली मचा दी, गुणवत्ता और किफायती दाम ने निरमा को जल्द ही हर घर तक पहुंचा दिया, आज, निरमा ग्रुप एक मल्टी-करोड़ साम्राज्य है और 18,000 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है।
स्नैक्स और स्किनकेयर में भी सफलता
इसी तरह, प्रताप स्नैक्स (Prataap Snacks) की शुरुआत अमित कुमत और उनके सहयोगियों ने ₹15 लाख के मामूली निवेश और 100 वर्ग फुट के एक छोटे से कार्यालय से की थी, उनका ब्रांड “येलो डायमंड” चिप्स आज 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक राजस्व अर्जित करता है।
स्किनकेयर के क्षेत्र में, अर्थ रिदम (Earth Rhythm) की संस्थापक हरिणी शिवकुमार ने 35 साल की उम्र में नौकरी छोड़कर अपने घर से इस ब्रांड को शुरू किया, जो अब 200 करोड़ रुपये की कंपनी बन चुकी है।
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तकनीक और कृषि क्षेत्र में भी क्रांति
तकनीकी नवाचार का एक बेहतरीन उदाहरण ‘अपना’ (Apna) ऐप है। एप्पल में अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, पारेख ने ब्लू-कॉलर श्रमिकों और नियोक्ताओं को जोड़ने के लिए यह मंच बनाया, लॉन्च के केवल 22 महीनों में, ‘अपना’ यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो गया और इसका मूल्यांकन ₹9,016 करोड़ (USD 1.1 बिलियन) तक पहुंच गया।
ये सभी मामले स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि सही व्यावसायिक विचार, बाजार की समझ और अटूट दृढ़ता के साथ, एक छोटा घरेलू काम न केवल एक बड़ा और सफल व्यवसाय बन सकता है, बल्कि यह आर्थिक विकास और व्यापक रोजगार सृजन का एक शक्तिशाली माध्यम भी है।

















